अमेरिकी शॉर्ट-सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च (Hindenburg Research) ने पिछले हफ्ते अडानी ग्रुप (Adani Group) पर कथित अकाउंटिंग हेरफेर का आरोप लगाते हुए एक रिपोर्ट जारी किया था। इसके बाद से शॉर्ट सेलिंग का मुद्दा सुर्खियों में बना हुआ है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पिछले हफ्ते 24 जनवरी को आई थी और तब से अबतक अडानी ग्रुप की वैल्यू में 117 अरब डॉलर की भारी कमी आ चुकी है। यह इतिहास में किसी भी बिजनेस घराने के मार्केट वैल्यू में आई सबसे बड़ी गिरावटों में से एक है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में “स्टॉक की कीमतों में छेड़छाड़ और अकाउंटिंग फ्रॉड” में शामिल होने का आरोप लगाया गया था।
Adani-Hindenburg Row: शॉर्ट सेलिंग क्या है और कैसे हिंडनबर्ग को इससे हो रहा है करोड़ों का फायदा? – Adani Group Hindenburg Research row What is short selling and why is it in news
हालांकि अडानी समूह ने इन आरोपों को निराधार बताया है। इसके बावजूद अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों में रिपोर्ट सामने आने के बाद तेज गिरावट आई है। इस गिरावट का असर अडानी ग्रुप के फाउंडर गौतम अडानी की संपत्ति पर भी पड़ा है और फोर्ब्स की रियल-टाइम बिलेनियर लिस्ट के मुताबिक, अब वह एशिया के सबसे अमीर इंसान नहीं हैं।
अडानी-हिंडनबर्ग मुद्दे को इससे भी जटिल बनाने वाली बात यह है कि हिंडनबर्ग रिसर्च केवल एक रिसर्च फर्म नहीं है। यह एक ‘शॉर्ट-सेलर’ फर्म है, जिसे अडानी ग्रुप के शेयरों में तेज गिरावट से वित्तीय फायदा पहुंच रहा है।
आइए समझते हैं कि शॉर्ट सेलिंग क्या है और इससे हिंडनबर्ग रिसर्च को कैसे फायदा होता है?
शॉर्ट सेलिंग शेयर बाजार में कारोबार करने का एक तरीका या रणनीति है। इस दौरान निवेशक किसी कंपनी के शेयर चढ़ने पर नहीं, बल्कि गिरने पर दांव लगाता है। निवेशक पहले उस शेयर को चुनता है, जिसकी कीमत उसे गिरने की उम्मीद रहती है। फिर वह इस शेयर को उधार में लेकर बेच देता है। कुछ दिन बाद जब शेयर की कीमत गिर जाती है, तो वह सस्ते दाम पर उसी शेयर को वापस खरीदकार उसे लौटा देते हैं। आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं।
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शॉर्ट-सेलिंग में निवेशक यह अनिवार्य रूप से शर्त लगाता है कि कंपनी का शेयर नीचे जाएगा। इसे एक काफी जोखिम भरा निवेश रणनीति माना जाता है। पारंपरिक ट्रेडिंग में, निवेशक एक शेयर खरीदता है और उम्मीद करता है कि इसकी कीमत ऊपर जाएगी। वहीं शॉर्ट-सेलिंग में निवेशक शेयर गिरने की उम्मीद करता है।
कैसे की जाती है शॉर्ट-सेलिंग
स्टॉक को शॉर्ट करने के लिए, ट्रेडर्स एक निश्चित अवधि के लिए ब्रोकर से शेयर उधार लेते हैं। फिर वे स्टॉक बेचते हैं और पैसा कमाते हैं। जब उधार लिए गए शेयरों को वापस करने का समय होता है, तो वे बाजार से सस्ते कीमत पर वापस शेयर खरीदते हैं और उन्हें ब्रोकर को चुका देते हैं।
मान लीजिए एक ‘एबीसी’ नाम की कंपनी है। इसके एक शेयर की कीमत अभी बाजार में 100 रुपये हैं। हालांकि एक निवेशक को लगता है कि अगले कुछ दिनों में इस शेयर का भाव घटकर 50 रुपये तक आ सकता है। निवेशक अब यहां पैसे कमाने के लिए शॉर्ट-सेलिंग का तरीका अपना सकता है।
इसके लिए निवेशक अपने ब्रोकर्स से एबीसी कंपनी के 10 शेयर उधार लेगा और उसे बाजार भाव पर बेच देगा। अभी बाजार भाव 100 रुपये है, तो उसे 10 शेयर के कुल 1000 रुपये मिलेंगे। कुछ दिनों बाद जब शेयर का भाव गिरकर 50 रुपये हो जाएगा, तो वह वापस बाजार से एबीसी कंपनी के 10 शेयर खरीदा लेगा और उन्हें ब्रोकर को वापस लौटा देगा। इस तरह उसे करीब 500 रुपये का फायदा होगा। इसे ही शेयर शॉर्ट करना कहते हैं।
हिंडनबर्ग कैसे लगाती हैं शॉर्ट-सेलिंग पर दांव
हिंडनबर्ग फर्म, यही शॉर्ट-सेलिंग करती है। यानी वो विभिन्न कंपनियों के शेयरों के गिरने पर दांव लगाती है। अगर फर्म के उम्मीदों के मुताबिक कंपनी के शेयरों में गिरावट आती है, तो उसे भारी मुनाफा होता है। हिंडनबर्ग अपने खुद के रिसर्च के आधार पर कंपनियों के शेयरों को शॉर्ट करने में अपना पैसा लगाती है। रिसर्च के दौरान वह ऐसी कंपनियों को खोजती है, जिसमें किसी तरह की अकाउंटिंग हेरफेर, मैनजमेंट में गड़बड़ी और पर्दे के पीछे से कोई थर्ड-पार्टी ट्रांजैक्शन शामिल हो, जिसके सामने आने पर उस फर्म का शेयर धड़ाम हो जाए।