जानी-मानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी स्टैबिलिटी एआई (Stability AI) के CEO एमाद मुश्ताक (Emad Mostaque) का कहना है कि आउटसोर्स किए गए भारत के ज्यादातर प्रोग्रामर्स की नौकरी अगले दो साल में खत्म हो जाएगी। स्विट्जरलैंड के इनवेस्टमेंट बैंक UBS के एनालिस्ट्स के साथ कॉल में मुश्ताक ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की वजह से, आउटसोर्स किए गए ज्यादातर कोडर्स को अपनी नौकरी गंवानी पड़ सकती है, क्योंकि सॉफ्टवेयर डिवेलप करने के लिए काफी कम लोगों की जरूरत होगी।
AI की वजह से अगले दो साल में इंडियन प्रोग्रामर्स की नौकरियों पर बड़ा खतरा
स्विस बैंक के साथ कॉल में मुश्ताक ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह अलग-अलग तरीके से अलग-अलग तरह की नौकरियों पर असर डालेगा।’ मुश्ताक के मुताबिक, हालांकि, इससे हर कोई एक ही तरह से प्रभावित नहीं होगा, क्योंकि हर देश के अपने अलग नियम-कानून हैं। फ्रांस जैसे देशों पर इसका असर कम होगा, जहां श्रम कानून बेहद सख्त हैं।
उन्होंने कहा, ‘जहां तक भारत का सवाल है, तो आउटसोर्स किए गए कोडर (तीसरे लेवल के प्रोग्रमर तक) अगले एक या दो साल में नौकरी गंवा देंगे, जबकि फ्रांस में आप कभी भी किसी डिवेलपर को हटा नहीं सकेंगे। कहने का मतलब यह है कि यह अलग-अलग देशों और अलग-अलग सेक्टरों में अलग-अलग तरीके से असर डालेगा।’
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 50 लाख से भी ज्यादा सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर हैं, जिन पर चैटजीपीटी (ChatGPT) जैसे एडवांस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल की वजह से खतरा मंडरा रहा है। भारत उन कंपनियों का मुख्य ठिकाना है, जो बैक ऑफिस जॉब और विदेशों से जुड़ी तकनीकी गतिविधियों को आउटसोर्स करता है। सिलकॉन वैली की बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां, अमेरिकी बैंक, एयरलाइंस से लेकर रिटेलर तक, सभी भारत की आउटसोर्सिंग फर्मों के ग्राहक हैं।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) देश की सबसे बड़ी आउटसोर्सिंग कंपनी है। बाकी आउटसोर्सिंग कंपनियों में विप्रो (Wipro) और इंफोसिस (Infosys) शामिल हैं। टीसीएस ने जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर बड़ा दांव लगाया है। कंपनी का कहना है कि वह अपने 25,000 इंजीनियरों को इसकी ट्रेनिंग देगी, ताकि क्लाइंट्स को इस नई टेक्नोलॉजी को अपनाने में मदद मुहैया कराई जा सके।
मुश्ताक का कहना था, ‘आपको कोड लिखने का काम क्यों दिया जाएगा, जब कंप्यूटर आपसे बेहतर कोड लिख सकते हैं। हालांकि, इस प्रोसेस में सब कुछ ऑटोमैटिक नहीं होगा। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सह-पायलट भी होंगे। इसका मतलब है कि शुद्ध प्रोग्रामिंग के लिए कम लोगों की जरूरत होगी, लेकिन क्या बाकी चीजों के लिए कोडर्स जरूरत होगी? यही असली सवाल है और हमें इसी संतुलन को समझना होगा, क्योंकि अलग-अलग क्षेत्रों में असर अलग-अलग हो सकते हैं।’