Daily Voice : दुनिया भर के बाजार इस समय इजराइल-हमास संकट के पूरे मध्य-पूर्व में फैलने और ग्लोबल अर्थव्यवस्था को इससे गंभीर नुकसान पहुचने के डर से जूझ रहे हैं। ऐसे में बाजार जानकारों का मानना है कि निवेशकों को अपने निर्णय लेते समय कुछ बुनियादी बातों के ध्यान में रखना चाहिए। ओमनीसाइंस कैपिटल के सीईओ और मुख्य निवेश रणनीतिकार विकास वी गुप्ता का कहना है कि जियोपोलिटिक तनाव चिंताजनक है। एक शांतिपूर्ण दुनिया आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए ज्यादा अच्छी होती है। इस बाजार पर कोई भविष्यवाणी करने के बजाय, निवेशकों को अच्छी विकास संभावनाओं वाली मौलिक रूप से मजबूत कंपनियों को खोजने पर फोकस करना चाहिए। इस समय ऐसी क्वालिटी कंपनियों पर फोकस करें जो सही वैल्यूएशन पर मिल रही हैं।”
Daily Voice : बाजार के बारे में सटीक भविष्यवाणी करना मुश्किल, यहां से 5% की तेजी या मंदी कुछ भी मुमकिन
पूंजी बाजार का लगभग 20 सालों का अनुभव रखने वाले विकास वी गुप्ता ने मनीकंट्रोल को दिए एक साक्षात्कार में अपने विचार साझा करते हुए कहा कि वे बाजार को लेकर बुलिश हैं। अमेरिका, भारत और यूरोपीय यूनियन सहित दुनिया भर में मजबूत आर्थिक बुनियाद को देखते हुए वे मध्यम से लंबी अवधि के साथ-साथ शॉर्ट टर्म के लिए भी इक्विटी बाजारों को लेकर उत्साहित हैं।
उन्होंने आगे कहा कि बाजार के बारे में कोई भविष्यवाणी करना, मौसम की भविष्यवाणी की तरह ही काफी जटिल होता है। हालांकि यह कहा सकता है कि यहां से बाजार में 5 की और गिरावट संभव है। लेकिन दूसरी तरफ 5 फीसदी की बढ़ोतरी भी समान रूप से संभव है। यानी तेजी या मंदी कुछ भी हो सकती है।
बाजार की चाल पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि गिरावट से पहले भी, मिडकैप और स्मॉलकैप की तुलना में लार्जकैप शेयरों का वैल्यूएशन अपेक्षाकृत कम था। जब बड़ी कंपनियां सस्ते में मिल रही हो तो निश्चित ही उनको प्राथमिकता मिलनी चाहिए। हालांकि इस गिरावट में पूरे बाजार में हमें अच्छे मौकों की तलाश करनी चाहिए। बाजार में हालिया गिरावट के बाद अब स्मॉलकैप शेयरों में भी मौके दिख रहे हैं।
क्या आपको लगता है कि पांच राज्यों के चुनावों के नतीजे इक्विटी बाजार के लिए अहम होंगे? इस पर विकास ने कहा कि राष्ट्रीय चुनाव अधिक महत्व रखते हैं, क्योंकि ये देश के मैनेजमेंट और इसकी आर्थिक नीतियों को तय करते हैं, जिसका कंपनियों और निवेश पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है।
इसके विपरीत, राज्य चुनाव स्थानीय कारकों पर अधिक फोकस करते हैं और जरूरी नहीं कि वे राष्ट्रीय चुनावों के नतीजों को प्रभावित करें। मतदाता अक्सर राज्य और राष्ट्रीय चुनावों में अलग-अलग तरीके से मतदान करते हैं। जिसके चलते राज्यों के नतीजों से राष्ट्रीय चुनाओं के रुझान का सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
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