करीब 100 साल चलन में रहे चांदी के सिक्के, लेकिन साल 1917 में अंग्रेजों ने अचानक कर दिये बंद, जानिए पूरी कहानी

आज के समय में चांदी के सिक्के अक्सर एक कीमती उपहार या टोकन के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं। इससे चांदी के सिक्कों की वैल्यू के बारे में पता चलता है। अब सिल्वर कॉइन का गिफ्ट के तौर पर इस्तेमाल करना आम नहीं है। इतिहास में एक समय ऐसा भी था जब चांदी के सिक्के हर जगह चलते थे और लगभग सभी के पास होते थे। हालांकि, एक समय एक बहुत बड़े कारण से इनका चलन अचानक बंद हो गया। क्या आप जानते हैं कि वह क्या कारण था?

ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार पहला चांदी का सिक्का जिसका मूल्य 1 रुपये था, 1757 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने जारी किया था। इस सिक्के पर किंग जॉर्ज द्वितीय का चित्र था और इसका वजन लगभग 11.5 ग्राम था। कोलकाता, जिसे पहले कलकत्ता के नाम से जाना जाता था, में ढाला गया यह पहला एक रुपये का सिक्का 19 अगस्त 1757 को शुरू हुआ था।

1757 से 1835 तक ईस्ट इंडिया कंपनी इन सिक्कों का प्रोडक्शन करती रही। ब्रिटिश सरकार का भारत में अपने पैर मजबूत करने के बाद चांदी के सिक्कों का उत्पादन जारी रहा। यह बताया गया है कि इन सिक्कों का रोजाना के ट्रांजेक्शन में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाने लगा। दैनिक वेतन मजदूरों को 3 रुपये से 4 रुपये तक का पेमेंट मिलता था। आमतौर पर उनकी मेहनत के लिए रोजाना दिन के चार सिक्के मिलते थे।

साल 1917 में पहली बार नोट जारी किए गए और जिससे सिक्कों का चलन घट गया। इस नए नोट में किंग जॉर्ज पंचम की इमेज थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान चांदी के अधिक इस्तेमाल के बाद चांदी की कमी होने लगी। यही कारण है कि कॉस्ट को कम करने और चांदी की कम उपलब्धता के कारण वह नोट प्रिंट करने लगे।

मुंबई के कलेक्टर गिरीश वीरा ने कहा कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान चांदी की कीमतें बढ़ीं, जिससे चलन में एक रुपये के सिक्के की छवि वाले नोटों की छपाई को बढ़ावा मिला। उन्होंने कहा, “तब से हर एक 1 रुपये के नोट पर उस साल के एक रुपये के सिक्के को दर्शाया गया है।” बाद में चांदी का सिक्का फिर से शुरू हुआ लेकिन उसकी क्वाटिंटी और चलन कम हो गया।

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