सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच ने कहा कि इनीशियल पब्लिक ऑफर (IPO) में शेयरों को प्रो-रेटा आधार पर आवंटन को इसलिए रोक दिया गया क्योंकि यह प्राइस-डिस्कवरी सिस्टम को भ्रष्ट बना रहा था। बुच ने शुक्रवार को CII ग्लोबल इकोनॉमिक पॉलिसी फोरम को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं। दर्शकों के बीच मौजूद बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के इंडिया प्रैक्टिस के चेयरमैन जनमेजय सिन्हा ने रिटेल निवेशकों और हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल (HNI) के लिए IPO के आवंटन के ‘रैंडम’ सिस्टम पर स्पष्टीकरण मांगा। साथ ही उन्होंने यह भी पूछा कि आवंटन के प्रो-रेटा सिस्टम को क्यों बंद किया गया? सवाल पूछने से पहले उन्होंने एक डिस्क्लेमर जोड़ा था कि यह सवाल उन्हें उनके इन्वेस्टमेंट बैंकर दोस्तों ने भेजा है।
IPO में क्यों नहीं मिलते सबको शेयर? SEBI चेयरपर्सन ने बता दी वजह
प्रो-रेटा सिस्टम में IPO आवंटन को आनुपातिक रूप से किया जाता है। इसका मतलब है कि आवेदन करने वाले हर व्यक्ति को आवंटन मिलता है। लेकिन जरूरी नहीं कि यह आवंटन उन्हें उसी मात्रा में आवेदन किया है, जिस मात्रा में उन्होंने आवेदन किया हो। यदि ओवरसब्सक्रिप्शन होता है, तो सभी को उस संख्या के अनुपात में आवंटन मिलता है जिसके लिए उन्होंने आवेदन किया है।
उदाहरण के तौर पर अगर किसी आईपीओ को 2 गुना ज्यादा सब्सक्राइब किया गया है, तो इसका मतलब है कि हर शेयर के लिए दो आवेदन हैं। फिर, शेयरों की संख्या के बदले आवेदनों के अनुपात के आधार पर आवंटन किया जाएगा। इस मामले में, एक निवेशक की ओर से दाखिल किए गए प्रत्येक दो आवेदनों के बदले, एक शेयर आवंटित किया जाएगा।
यह भी पढ़ें- रिटेल निवेशकों के लिए अच्छी खबर! SEBI लाएगा निवेश का नया साधन, मिलेगा म्यूचुअल फंड से भी ज्यादा रिटर्न
बुच के मुताबिक यह सिस्टम, प्राइस-डिस्कवरी सिस्टम में मदद नहीं कर रहा था। उन्होंने कहा कि यह IPO की गलत तस्वीर पेश कर रहा था और IPO के लिए मांग को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहा था।
उन्होंने कहा, “इसके तहत IPO में ओवरसब्सक्रिप्शन का स्तर बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा था। क्योंकि प्रो-रेटा मैकेनिज्म में अगर किसी को शेयर चाहिए होता था, तो इन्वेस्टमेंट बैंकर अपने क्लाइंट को जरूरत से कहीं अधिक शेयर खरीदने की सलाह देते थे। उदाहरण के लिए, यदि बैंकर को उम्मीद है कि इश्यू 20 गुना अधिक सब्सक्राइब हो जाएगा और यदि निवेशक 100 शेयर चाहता है, तो बैंकर उसे 2,000 के लिए आवेदन करने के लिए कहेगा)। इसलिए, प्राइस डिस्कवरी सिस्टम को भ्रष्ट किया जा रहा था। इससे ऐसा लग रहा था कि मैं (एक ग्राहक) 2,000 शेयर चाहता था, जबकि वास्तव में मुझे केवल 100 शेयर चाहिए थे।”
सेबी चेयरपर्सन ने दोहराया कि बाजार नियामक कभी भी IPO की प्राइस डिस्कवरी पर फैसला नहीं लेगा और इसकी जगह बाजार को मांग और सप्लाई के आधार पर कीमत तय करने देगा।