टैक्स-छूट खत्म होने का बिक्री पर असर नहीं पड़ने का LIC का दावा कितना मजबूत है? – lic says removal of tax exemptions will not impact its business is this claim of lic true

इंडिया में इंश्योरेंस इंडस्ट्री की बुनियाद काफी हद तक इनकम टैक्स पॉलिसी पर निर्भर रही है। इनकम टैक्स नियमों में लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी (Life Insurance Policy) खरीदने पर टैक्स-छूट मिलती है। देश की सबसे बड़ी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी LIC का जन्म 1956 के एक एक्ट के जरिए हुआ था। आज इसकी मजबूत स्थिति में इंश्योरेंस पॉलिसी पर मिलने वाली टैक्स छूट का बड़ा हाथ है। एलआईसी की करोड़ों पॉलिसीज टैक्स बचाने वाले हथियार के रूप में बेची गई है। LIC के चेयरमैन ने खुद यह कहा है कि कंपनी की कुल सालाना प्रीमियम का करीब आधा हिस्सा जनवरी, फरवरी और मार्च में आता है। इसकी वजह यह है कि 31 मार्च की डेडलाइन करीब आने पर लोग लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स खरीदने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं। लोग बगैर ज्यादा सोचेसमझे टैक्स घटाने के लिए जो इंश्योरेंस पॉलिसी ऑफर की जाती है, उनमें निवेश कर देते हैं।

बजट 2023 के प्रस्तावों का LIC पर पड़ेगा असर

यूनियन बजट 2023 में ऐसे दो प्रस्ताव हैं, जिनका LIC सहित इंश्योरेंस कंपनियों की ग्रोथ पर बड़ा असर पड़ेगा। पहला, सालाना 5 लाख रुपये से ज्यादा प्रीमियम वाली लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के मैच्योरिटी अमाउंट पर अब टैक्स चुकाना होगा। दूसरा, सरकार इनकम टैक्स की न्यू रिजीम को बढ़ावा दे रही है। इसमें किसी तरह की टैक्स-छूट उपलब्ध नहीं है। इसका मतलब है कि लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स की बिक्री में बड़ा रोल निभाने वाला टैक्स एग्जेम्प्शन खत्म हो जाएगा, जिसका सीधा असर LIC की ग्रोथ पर पड़ेगा।

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एक से ज्यादा पॉलिसी का प्रीमियम 5 लाख से ज्यादा होने पर टैक्स छूट नहीं

देश की तीन बड़ी प्राइवेट लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों ने माना है कि आने वाले समय में उनकी ग्रोथ कुछ घट जाएगी। हालांकि, LIC के चेयरमैन एम आर कुमार ने इसका बहुत कम असर पड़ने की बात कही है, क्योंकि इसकी 1 फीसदी से कम ऐसी पॉलिसीज हैं, जिनका प्रीमियम सालाना 5 लाख रुपये से ज्यादा है। लेकिन, बात सिर्फ इतनी नहीं है। एक व्यक्ति के पास एक से ज्यादा लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसीज हो सकती हैं। उनका कुल प्रीमियम सालाना 5 लाख रुपये से ज्यादा हो सकता है। ऐसे होने पर पॉलिसी का मैच्योरिटी अमाउंट टैक्स के दायरे में आएगा।

अब तक सभी पॉलिसीज पर मिलता था EEE बेनेफिट

कुमार ने इस बात पर जोर दिया है कि LIC की ज्यादातर पॉलिसीज कम अमाउंट की हैं। इस वजह से LIC की सेहत पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। लेकिन, रिटर्न भी एक बड़ा मसला है। लाइफ इंश्योरेंस की ज्यादातर पॉलिसीज रिटर्न के मामले में अट्रैक्टिव नहीं हैं। लो-रिटर्न ऐसे प्रोडक्ट्स टैक्स-छूट की वजह से अट्रैक्टिव हैं। इसके अलावा ULIP से जैसे प्रोडक्ट पर एग्जेम्प्ट-एग्जेम्प्ट-एग्जेम्पट का फायदा मिलता है। इसका मतलब यह है कि इनवेस्टर को इनवेस्टमेंट पर टैक्स नहीं देना पड़ता है। इनवेस्टमेंट अमाउंट के इंटरेस्ट पर टैक्स नहीं लगता है। आखिर में मैच्योरिटी अमाउंट भी टैक्स-फ्री है। अब यह बेनेफिट उपलब्ध नहीं होगा, क्योंकि 5 लाख रुपये से ज्यादा सालाना प्रीमिमय वाली सभी पॉलिसीज का मैच्योरिटी अमाउंट टैक्स के दायरे में आएगा।

ज्यादा रिटर्न वाले प्रोडक्ट्स में बढ़ सकती है दिलचस्पी

उपर्युक्त वजहों का असर इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स खरीदने वाले लोगों पर पड़ेगा। वे टैक्स से बचने और ज्यादा रिटर्न हासिल करने के लिए पेंशन फंड्स, फिक्स्ड डिपॉजिट या गोल्ड में निवेश करना चाहेंगे। 8-9 फीसदी रिटर्न के साथ बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट इंश्योरेंस पॉलिसी के मुकाबले ज्यादा अट्रैक्टिव नजर आता है। इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स का रिटर्न 5-7 फीसदी के बीच है।

एलआईसी की कुल बिक्री में घट रही अंतिम तिमाही की हिस्सेदारी

LIC पर ज्यादा असर इस बात से पड़ेगा कि लोग नई टैक्स रीजीम में कितनी दिलचस्पी दिखाते हैं। LIC के चीफ का कहना है कि कंपनी अब अपनी पॉलिसी की बिक्री टैक्स बचाने वाले प्रोडक्ट्स के रूप में नहीं करती है। इसलिए न्यू टैक्स रीजीम में टैक्सपेयर्स की दिलचस्पी बढ़ने का उस पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। उनकी बात सही लगता है, क्योंकि LIC की कुल बिक्री में चौथी तिमाही की हिस्सेदारी करीब आधा से घटकर एक-तिहाई रह गई है। इससे पता चलता है कि अब लोग न सिर्फ टैक्स बचाने के लिए बल्कि लाइफ रिस्क कवर करने के लिए इंश्योरेंस पॉलिसीज खरीद रहे हैं।

LIC को करना पड़ेगा बिजनेस मॉडल में बदलाव

लेकिन, एनालिस्ट्स इस दलील को मानने को तैयार नहीं हैं। लेकिन, चूंकि एलआईसी का बिजनेस टैक्स में मिलने वाली छूट पर खड़ा है, जिससे इसे अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए इंश्योरेंस बेचने के तरीके में बदलाव लाना होगा। कंपनी का कहना है कि उसने अभी से ऐसा करना शुरू कर दिया है। परिवार की कुल बचत में लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स की कम हिस्सेदारी से इस बात का चलता है कि इंडिया में इंश्योरेंस ऐसा प्रोडक्ट रहा है, जिसे बेचने के लिए जोर लगाने की जरूरत पड़ती है। इसके लिए टैक्स-एग्जेम्प्शंस जरूरी हैं।

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